श्रद्धा और सेवा यही साधक के दोनों पंख हैं।

श्रद्धा और सेवा यही साधक के दोनों पंख हैं।

 

🕉️ सूत्र:
“श्रद्धा और सेवा — यही साधक के दोनों पंख हैं, जिनसे वह प्रभु तक उड़ान भरता है।”

📜 अर्थ:
हनुमान जी की साधना में केवल भक्ति पर्याप्त नहीं — जब श्रद्धा (विश्वास) और सेवा (कर्म) एक साथ जुड़ते हैं, तभी योग पूर्ण होता है।
जैसे पक्षी बिना दोनों पंखों के नहीं उड़ सकता, वैसे ही साधक बिना श्रद्धा और सेवा के ईश्वर की अनुभूति नहीं कर सकता।

डॉ संजीव शर्मा योगाचार्य

बागेश्वर धाम सरकार के शिष्य

हिमालयन योगा के संस्थापक 

www.himyoga.org

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