हिंदू सनातन विचार
“जो परिवर्तनशील में अपरिवर्तन को पहचान लेता है, वही सनातन को जानता है।”
भावार्थ
सनातन धर्म का अर्थ है — जो न कभी आरंभ हुआ, न कभी समाप्त होगा।
यह किसी व्यक्ति या पुस्तक पर आधारित नहीं, बल्कि जीवन के शाश्वत सिद्धांतों पर आधारित है।
सनातन विचार के मूल तत्व
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सत्य एक है, मार्ग अनेक हैं।
— हर साधक अपनी प्रकृति के अनुसार ईश्वर तक पहुँच सकता है। -
सर्वभूत हिताय कार्यम्।
— प्रत्येक कर्म में समष्टि का कल्याण छिपा होना चाहिए। -
अहिंसा, सत्य, करुणा और सेवा — यही धर्म के चार स्तंभ हैं।
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मनुष्य शरीर साधना का साधन है।
— इसे केवल भोग में नहीं, योग में लगाना ही धर्म है। -
ईश्वर सर्वत्र है।
— जब यह दृष्टि जागृत होती है, तब हर प्राणी में ईश्वर का दर्शन होता है। -
कर्म ही पूजा है।
— बिना कर्म के धर्म अधूरा है; कर्म ही भक्ति और ज्ञान की भूमि तैयार करता है।
डॉ संजीव शर्मा योगाचार्य
बागेश्वर धाम सरकार के शिष्य
हिमालयन योगा के संस्थापक
www.himyoga.org