जीवनोपयोगी व्याख्या –
यदि हिंसा की भावना उठे तो तुरंत दया और करुणा का चिंतन करें।
यदि लोभ आए तो त्याग का चिंतन करें।🌿 जीवनोपयोगी व्याख्या –
आज के जीवन में यह मीडिया, राजनीति, समाज और व्यक्तिगत संबंधों में बहुत प्रासंगिक है।
यदि हम हिंसा देखकर भी प्रसन्न होते हैं, तो यह भी हिंसा का ही कर्मफल है।
यदि हम दूसरों की चोरी या झूठ का अनुमोदन करते हैं, तो हम भी उस पाप में सहभागी बनते हैं।
👉 इसलिए साधक को चाहिए कि हर समय प्रतिपक्ष भावना का अभ्यास करे।
डॉ संजीव शर्मा योगाचार्य
हिमालयन योगा
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