स्थिर मन, संतुलित तन

स्थिर मन, संतुलित तन

 

"स्थिर मन, संतुलित तन – यही है योग का सच्चा धन।
जब तुम प्रकृति की गोद में स्वयं से मिलते हो,
तब संसार की हलचल भी मौन हो जाती है।
एक पैर पर खड़े रहो, पर दोनों आत्मा और चेतना में टिके रहो।
यही है आसन का सार – भीतर और बाहर का संतुलन।"

 

डॉ संजीव शर्मा योगाचार्य 

हिमालयन योगा 

www.himyoga.org


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