माता अन्नपूर्णाजी और अगस्त्य ऋषिदेव जी कथा

माता अन्नपूर्णाजी और अगस्त्य ऋषिदेव जी कथा

*🚩जब भगवान श्रीकृष्ण जी के आह्वान पर अगस्त्य ऋषिदेव जी एक घूंट में पी गए देवराज इंद्र द्वारा लाई गई बाढ़ का पानी*

*माता अन्नपूर्णा जी और अगस्त्य ऋषिदेव जी की एक कथा*
*🙏सत्संग 🙏* 
जब भगवान श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन जी को धारण किया तो भगवान जी ने अगस्त्य ऋषिदेव जी का आह्वान किया कि अगस्त्य ऋषिदेव जी आओ और इस देवराज इंद्र के द्वारा जो यहाँ जल भरा हुआ है उसको पी जाओ और अगस्त्य मुनि देव जी आये, एक घूंट में सारा जल पी गए।अगस्त्य मुनि जी एक ऐसे ऋषिदेव जी हैं जिनके पास समुद्र को भी एक घूंट बनाकर के पीने की शक्ति है ।
ऋषियों मे अत्यंत शक्तिशाली ऋषि अगस्त्य जी, शिवजी के परम भक्त हैं। एक बार माता पार्वती जी, जो अन्नपूर्णा भी कहलातीं हैं, उन्होंने शिवजी से निवेदन किया, ‘महादेव जी! मेरी इच्छा है कि मैं संसार के सभी साधू-महात्माओं को भोजन करवाऊँ । इसलिए आप सभी साधू-संतों व ऋषि-मुनियों को आमंत्रित कीजिए।
‘इस पर शिवजी ने जो प्रतिष्ठित संत व ऋषि-मुनि थे उनको स्वयं बुलाया कुछ को बुलाने गणों को भेजा, इस प्रकार से संसार के सभी साधू-संतों व ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया । लाखों साधू-संत व ऋषि-मुनि एकत्रित हो गए । माता पार्वती जी ने सैंकड़ों व्यंजन भरपूर मात्रा मे बनवाए जिनको खा-खा सभी साधू-संत व ऋषि-मुनि निहाल होकर थक गए किन्तु व्यंजन ज्यों के त्यों ही पड़े रहे ।
माता पार्वती जी ने शिवजी को ताना मारा, ‘प्रभु जी! ये आप कैसे-कैसे महात्मा लेकर आए, जरा-जरा सा खाते हैं, वो देखो मेरा सारा अन्न बचा पड़ा है, कोई ऐसे महात्मा लेकर आते जो ज्यादा मात्रा में खाएं।’ शिवजी ने कहा ‘देवी तुम अन्नपूर्णा हो, तुम्हारा अन्न कोई तोड़ सकता है क्या ?’

शिवजी सीधे अपने परम भक्त अगस्त्य ऋषिदेव जी के पास गए और निमंत्रण दिया कि हमारा आतिथ्य स्वीकार करें । मेरी प्रिय भार्या ने ढेरों व्यंजन बनाए हैं, आपको भरपेट खाना है। अगस्त्य ऋषिदेव जी ने आश्चर्य से कहा ‘प्रभुजी ये आप कह रहे हो !’ महादेव जी बोले हाँ ये मैं कह रहा हूँ आपको भरपेट खाना है। तो ठीक है , चलें प्रभु जी!   माता पार्वती जी ने ओर भी ज्यादा व्यंजन बनाये ।
माता पार्वती जी भी सोचने लगी ये कैसा ब्राह्मण ले आए, सारे व्यंजन अकेले एक खा गए कैसा महात्मा है ! लेकिन माता पार्वती जी ने हार नहीं मानी, फिर से रसोई लगवाई, दोबारा बनवाया, दोबारा खाली कर दिया, तीसरी बार बनाया, तीसरी बार भी खाली कर दिया, पेट भरने में नहीं आ रहा ।
अब माता पार्वती जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और शिवजी से एकांत में जाकर क्षमा मांगी, प्रभु जी! मेरी लाज बचाओ, अगर इस साधु का आज पेट नहीं भरा तो सारे संसार में मेरी जग हँसाई हो जाएगी कि वो कैसी अन्नपूर्णा जो एक साधु का पेट नहीं भर सकी। शिवजी ने कहा बात मेरी सीमा से बाहर हो गई है, अब तो लाज नारायण जी बचा सकते हैं, देवी जी! आप नारायण जी को यहीं स्मरण करो मैं उनके पास जाता हूँ।
माता पार्वती जी तो कैलाश पर ही बैठकर स्मरण करने लगी और शिवजी चले गए नारायण जी के पास और बोले चलिए आपका न्योता है , भगवान जी ने कहा अवश्य मैं सब जानता हूँ क्या हो रहा है , इसलिए मुझे जाना ही पड़ेगा।
भगवान विष्णु जी ने एक साधु का भेष बना लिया , अगस्त्य ऋषिदेव जी के बराबर में आसान लगाया , पत्तल लगाई और थोड़ा थोड़ा सा भोजन परोसा जिसको खाकर भगवान जी ने पेट पर हाथ फेर और बोले तृप्तोस्मि तृप्तोस्मि तृप्तोस्मि मैं तृप्त हो गया मैं तृप्त हो गया मैं तृप्त हो गया और जब स्वयं जग्गनाथ जी तृप्त होते हैं तो जगत तो अपने आप तृप्त हो जाता है।
अगस्त्य ऋषिदेव जी देख रहे हैं कि मेरा पेट भर कैसे गया, अगस्त्य ऋषिदेव जी का पेट तो  भरा सो भरा, जगत के जितने भी चराचर प्राणी थे सबका पेट अचानक भर गया पूरा जगत तृप्त हो गया जग्गनाथ जी के तृप्त होते ही अब अगस्त्य ऋषिदेव जी को एहसास हुआ के ये साधु कोई साधारण साधु नहीं है जिसने मेरा पेट भर दिया, ये स्वयं जगन्नाथ जी हैं स्वयं नारायण जी हैं, तब नारायण जी साधु के भेस में बोले – अगस्त्य जी अब चलें, प्रभुजी रुको तो अभी थोड़ा पानी पी लेने दो ।
भगवान जी ने अगस्त्य ऋषिदेव जी का हाथ पकड़ लिया ओर बोले अभी पानी पीने का समय नहीं आया, द्वापर के अंत में मैं गोवर्धन लीला करूंगा उस समय तुम्हें भर पेट पानी पिलाऊँगा, चलो ये पार्वती जी का पीछा छोड़ो । तब ऐसे भगवान विष्णुजी ने माता पार्वती की लाज बचाई । 

तो श्री कृष्ण जी परिपूर्ण भगवान हैं, जितने भी पूर्ण स्वरूप हैं वो भगवान श्री कृष्ण जी में पहले से ही विराजमान हैं, श्रीराम जी भी और श्री विष्णु जी भी, श्री कृष्ण जी में ही हैं ।
तो श्री विष्णु जी ने जब कृष्णअवतार में गोवर्धन लीला रची और इन्द्र देव ने अभिमान वश पूरे ब्रज कुवृष्टि करके पानी से भर दिया और श्रीकृष्णजी ने देखा कि चारों तरफ जल भराव हो गया है, तब श्री कृष्ण जी  ने अगस्त्य ऋषिदेव जी का आह्वान किया, तब  अगस्त्य जी आए और सारा जल, जो ब्रजमंडल में भर गया था, वो सारा जल पी गए ।
तो इस तरह भगवान विष्णु जी ने अपने वचन के अनुसार अगस्त्य मुनि जी को द्वापर युग में गोवर्धन लीला के समय जी भर के पानी पिलाया।
डॉ संजीव शर्मा योगाचार्य 
हिमालयन योग 
रक्कड़ ,धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश 
www.himyoga.org
*ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🙏*

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